कहीं सांझ कोई दीप जलाये कहीं जले दहलीज़ |
कहीं पेट की आग जले, तो कहीं जले हैं मीत | |
कहीं जुनूं में जलता मानुष , कहीं जले हैं मुरीद |
कहीं शाह का शहर जले , तो कहीं जले हैं रीत | |
कहीं भीड़ बनती है अनल तो, कोई जले तन्हाई से |
कहीं खजाने की गरमी, तो कोई जले महंगाई से | |
प्रीत जले है कहीं दिलों में, कहीं बैर की आग है |
बोझिल पग ये थामे कहाँ पर, दुनिया भागमभाग है | |
मंदिर में बाती है जलती, घर में जलता साथी |
कहीं किसी की चिता जले,तो साथ में जलती माटी | |
मंडप में विस्वाश है जलता, तन भी तो हर रात में जलता !!!!!!!
कहीं तपिश तासीर जलाती, कहीं कशिश तदबीर |
कहीं साथ को यौवन जलता, जलता कहीं शरीर | |
सावन की बरसात भी जलती, हर पल को कोई बात भी जलती |
साथ बिना हर संग है जलता, जीवन का हर ढंग है जलता | |
जलता सबकुछ इसी ज़मीं पर, रजा हो या फकीर |
रंग बिना तस्वीर जले तो, कहीं जले तकदीर | |
जीते तक जीवन है जलता, रंग, तरंग , उमंग है जलता
जलता साज कहीं पर देखो, कहीं किसी का सरगम जलता
मैं जलता, मेरा मैं जलता, खुद को पाने को मैं जलता |
पल जलता पल भर देने को, वक़्त की धार बदल देने को | |
सब जलते हैं ….
सबके जलते हैं …..
जीव जले, जीवन भी जलता
फिर क्या पूछूं?
किस से पूछूं?
दावानल है सारा जीवन , क्यूँ न जले फिर मेरा ये मन ?
क्यूँ न जले फिर मेरा ये मन ?????
(उपेन्द्र दुबे )
hsonline
अगस्त 28, 2011 @ 20:38:32
बहुत सुंदर
induravisinghj
अगस्त 28, 2011 @ 22:02:58
दावानल है सारा जीवन , क्यूँ न जले फिर मेरा ये मन ?
क्यूँ न जले फिर मेरा ये मन ?????
अद्भुत, भावों का सुंदर अभिव्यक्तिकरण…
upendradubey
अगस्त 28, 2011 @ 22:09:34
बहुत बहुत धन्यवाद इंदु जी एवं हितेंद्र जी आपके इन अनमोल एवं उत्साहवर्धक वचनों के लिए…
rafatalam
अगस्त 29, 2011 @ 15:20:19
dube ji bahut accha laga aapke blog par aakar .kai rachnaaye padhi aur aandit huaa.shubhkaamna. rachnaaye padhwaane ke liye aabhaar .
upendradubey
अगस्त 29, 2011 @ 19:12:34
धन्यवाद रफत भाई ..शार्थक हुई मेरी रचना जिसने आपके ह्रदय को छूने का शुभाग्य प्राप्त किया ..
आपका ये उत्साहवर्धन निश्चय ही एक नया आयाम देंगी मेरी रचनाओं को….
स्वप्नेश चौहान
अगस्त 30, 2011 @ 10:03:58
bahut barhiya upendra jee…
shabd kam hain iss rachna ki prashansaa ke liye…
upendradubey
अगस्त 30, 2011 @ 19:13:14
हृदयाभार स्वप्नेश जी .हमारी ये भावांजलि आपके ह्रदय को छू सकी, सार्थक हुई हमारी ये रचना
ramadwivedi
अगस्त 30, 2011 @ 21:12:45
बहुत ही भावपूर्ण रचना उपेन्द्र जी ….कहीं न कहीं हम सब जल रहे हैं …..सारगर्भित रचना के लिए बधाई …..
upendradubey
अगस्त 30, 2011 @ 21:45:26
धन्यवाद रमा जी….
Yashwant Mathur
सितम्बर 05, 2011 @ 11:26:13
कल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
upendradubey
सितम्बर 05, 2011 @ 20:02:03
धन्यवाद आपके इस कदम से इस रचना की उपलब्धता बढ़ेगी ….
sada
सितम्बर 06, 2011 @ 15:51:07
मंदिर में बाती है जलती, घर में जलता साथी |
कहीं किसी की चिता जले,तो साथ में जलती माटी
बेहतरीन ।
संजय मिश्रा 'हबीब'
सितम्बर 08, 2011 @ 20:08:32
बहुत सुन्दर…
सादर..
upendradubey
सितम्बर 08, 2011 @ 22:25:49
धन्यवाद सदा जी….
आभार संजय जी ……
manjari
फरवरी 27, 2013 @ 22:10:48
क्यूँ न जले फिर मेरा ये मन ?
kafi achhey se justify kiya hai…