कहीं सांझ कोई दीप जलाये कहीं जले दहलीज़ |
कहीं पेट की आग जले, तो कहीं जले हैं मीत | |
कहीं जुनूं में जलता मानुष , कहीं जले हैं मुरीद |
कहीं शाह का शहर जले , तो कहीं जले हैं रीत | |

कहीं भीड़ बनती है अनल तो, कोई जले तन्हाई  से |
कहीं खजाने की गरमी,  तो कोई जले महंगाई से  | |
प्रीत जले है कहीं दिलों में, कहीं बैर की आग है |
बोझिल पग ये थामे कहाँ पर, दुनिया भागमभाग है | |

मंदिर में बाती है जलती, घर में जलता साथी |
कहीं किसी की चिता जले,तो साथ में जलती माटी | |

मंडप में विस्वाश है जलता, तन भी तो हर रात में जलता !!!!!!!

कहीं तपिश तासीर जलाती, कहीं कशिश तदबीर |
कहीं साथ को यौवन जलता, जलता कहीं शरीर | |

सावन की बरसात भी जलती, हर पल को कोई बात भी जलती |
साथ बिना हर संग है जलता, जीवन का हर ढंग है जलता  | |
जलता सबकुछ इसी ज़मीं पर, रजा हो या फकीर |
रंग बिना तस्वीर जले तो, कहीं जले तकदीर | |

जीते तक जीवन है जलता, रंग, तरंग , उमंग है जलता
जलता साज कहीं पर देखो, कहीं किसी का सरगम जलता

मैं जलता, मेरा मैं जलता, खुद को पाने को मैं जलता |
पल जलता पल भर देने को, वक़्त की धार बदल देने को | |

सब जलते हैं ….
सबके जलते हैं …..
जीव जले, जीवन भी जलता
फिर क्या पूछूं?
किस से पूछूं?

दावानल है सारा जीवन , क्यूँ न जले फिर मेरा ये मन ?
क्यूँ न जले फिर मेरा ये मन ?????

(उपेन्द्र दुबे )