खून का दरिया बहा है,
जिस्म भी बिखरा पड़ा है |
और पवन उन्मत्त अब भी, झूम कर है गा रही
गंध ए बारूद की, किसकी सुलग से आ रही
जल रहा है क्या यहाँ, चूल्हों में कोई असलाह है ??
या कहीं खंजर ले हाथों में, खड़ा सैलाब है ??
कुछ कहो कुछ तो बताओ,
क्यूँ गली में शोर है ???
क्यूँ महकती वादियों में,
आ घुसा कोई चोर है ???
कल शहर की उस हवेली में, मरा एक श्वान था
सुर्खियाँ बन के खबर, चर्चा वो शहर-ए-आम था
आज क्यारी लाल है,
चूड़ियाँ बेहाल हैं
बेटियों की अस्मतें, जब लुट रहीं हर चौक पर
क्यूँ खबर अखबार की, भड़वा बनी है नोट पर ???
दूरदर्शन पर प्रदर्शन,
अधखुली देहों के दर्शन
और मुहल्लों के घरों में, बस टपकती लार है
क्या बहन और नारियों की, जिंदगी बाजार है ???
पर अचानक उस गली में, कुछ नज़ारा और था
और समय की चाल पर, एक सभ्यता का जोर था
अधखुली नंगी धडें थीं
खोखली करती जडें थीं
और बदन की गर्मियां, शर्दी को करती नर्म थी
कौन कहता है की एक, औरत का गहना शर्म थी
भूख से बच्चा बिलख कल, मर गया सुनसान में
बाप उसका ओढ़ बैठा, जिंदगी शमशान में
लोग कहते थे, गरीबी भुखमरी का जोर है
बदहवासी को समेटे, जिंदगी कमजोर है
पर यहीं गोदाम में, गेहूं की बोरी सड़ गयी
कागजों पर अन्न की, भण्डार क्षमता बढ़ गयी
भूख शायद झूठ है
बाग बनता ठूँठ है
और ए फितरत बागबाँ कि, दिल का दरवाजा खुला
ठूँठ के मधुबन पे देखो, हर खजाना लुट गया
शान्ति कि वार्ता, चलती रही महलों में ही
ध्वज लहरता है किले पर, साल में दो बार भी
कुछ करोड़ों का ए जलसा, शान मेरे हिंद कि
झूठ है सीमाओं पर बहता लहू, लुटती हुई हर जिंदगी
चार तांबे के वो तमगे, डाल कर उस भाल पर
कर अदा कीमत कफ़न की, है तमाचा गाल पर
खुश है हम तो क्या गिला है??
जैसे हम वैसा सिला है!!!
कौन कहता है यहाँ, चिंगारियां धधकी कभी
जिंदगी जब मौत से, हर पल यहाँ सस्ती लगी
हर तरफ बस प्रश्न है
प्रश्न भी कुछ नग्न है
क्या यही बस प्रश्न बन, बारूद सा कुछ जल रहा ???
और यूँ ठंडी राख से, छंटता धुवाँ सा पल रहा ???
या सुलग निशक्त सी, बस गंध ले कर आ रही ??
जो अधूरी आपसे कुछ, पंक्तियाँ समझा रही
क्या पता कल कि सुबह कुछ, फिर अँधेरी सी लगे
आपमें भी प्रश्न ऐसा, कुछ अधिक बन कर जगे
तो सवालों कि ए बस्ती, कुछ अधिक गुलज़ार होगी
जिंदगी कुछ इन सवालों को, लिए बेजार होगी
तो सवालातों के मंज़र, कुछ हंसी बन कर सजेंगे
मन में उठते हर भवंर बस, धार बन कर न रहेगे
बस यही एक स्वप्न है
फिर जिंदगी तो जश्न है
जिंदगी तो जश्न है
उपेन्द्र दुबे(२३/०७/२०१२)
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